Tuesday, December 25, 2018

अमलकांति

अमलकांति मेरा दोस्त है 
 हम स्कूल में एक साथ पढ़ते थे। 
 रोज़ देर से आता था, और सबक कभी न याद रहता था उसे। 
 शब्द-रूप पूछो तो ऐसे हैरानी से खिड़की की ओर देखता था 
 दिल में टीस-सी होती थी हमें |
 
 हम में से कोई मास्टर बनना चाहता था, कोई डॉक्टर, कोई वकील 
 अमलकांति इन में से कुछ भी नहीं बनना चाहता था। 

 वो धूप बनना चाहता था। 
 वो शर्मीली-सी धूप, जो बारिश रुकने के बाद शाम को निकलती है 
 वही जो जामुन के पत्ते पे ज़रा सी हँसी की तरह फैल जाया करती है ...


 हम में से कोई मास्टर बना, कोई डॉक्टर, कोई वकील 
 अमलकांति धूप न बन सका। 
 वह अभी एक अँधेरी प्रेस में काम करता है 
 और कभी-कभी मुझसे मिलने आता है। 
 चाय पीता है, इधर-उधर की बातें करता है 
 और बोलता है, "चलता हूँ फिर!" 
 मैं उसे दरवाज़े तक छोड के आता हूँ।
 
 हम लोगो में से जो मास्टर बना,
 वह आराम से डॉक्टर बन सकता था 
 जो डॉक्टर बनना चाहता था 
 वह अगर वकील बनता तो कोई नुकसान न था।
 
 पर सबकी इच्छाएं पूरी हुई, सिवाय अमलकांति केे। 
 वही अमलकांति, जो धूप के बारे में

 सोचते सोचते ...
 सोचते सोचते ..
 एक दिन खुद धूप बन जाना चाहता था।
 










~ Nirendranath Chakrabarty 
(ये बंगाली भाषा के कवि हैं, जिनका निधन साल 2018, दिसंबर में हुआ) 

Translation : Nayana/नयना 

Wednesday, December 12, 2018

"मुझसे इश्क़ करने के बाद"

"मुझसे इश्क़ करने के बाद"

(बांग्लादेशी कवि : हुमायूँ आज़ाद)
(हिंदी ट्रांसलेशन : नयना)
 ________

 मुझसे इश्क़ करने के बाद तुम्हारा कुछ भी पहले जैसा नहीं रह पायेगा। 
 जैसे हिरोशिमा के बाद 
 उत्तरी से दक्षिणी मेरु तक कुछ भी पहले जैसा नहीं रहा।
 
 दरवाजे पर जो घंटी बजी ही नहीं, उसीको सुनोगी बार बार 
 सब दरवाजे खिड़कियाँ काँप उठेंगे और तुम्हारा दिल भी 
 जैसे बिजली गिरी हो! 
 अगले ही पल तुम्हारा छन छन बोलता, इधर उधर दौड़ता खून, 
 ठंडा पढ़ जाएगा| 
 जैसे सन इकहत्तर में दरवाजे पर बूट की अजीब आवाज़ से 
 ढाका की आवाम सुन्न हो जाया करती थी।
 
 मुझसे इश्क़ करने के बाद कुछ भी पहले जैसा नहीं रह जायेगा 
 रास्ते में उतरते ही देखोगी जैसे सामने से आनेवाली हर एक रिक्शा में
मै ही चला आ रहा हूँ भागता हुआ
और बिना रुके, तुमसे दूर जा रहा हूँ । 
 इधर उधर ।
बस यूँ ही! कहीं भी!

तब तुम्हारे खून और काले चश्में में इतना गहरा अँधेरा छायेगा.. 
 जैसे उन आँखो से तुमने कभी भी, कुछ भी न देखा हो।
 
मुझसे प्यार करने के बाद तुम भूल जाओगी वास्तव -अवास्तव 
सच और सपने का फ़र्क़ । 

सीढ़ी समझकर पैर रख दोगी सपनों के शिखर पर
हरी घास समझकर बैठ जाओगी अवास्तव पर 
और लाल फूल समझकर 
बालों में गूँथ लोगी ढेर सारे सपने।
 
बंद शावर के नीचे खड़ी रह जाओगी 
बारह दिसंबर से समय के अंत तक.... 
यही सोचते हुए के तुम्हारे बाल, शरीर, गर्दन और होठों को 
बोदलेयर* के अद्भुत बादल छू के जा रहे है निरन्तर ....
 



तुम्हारे जिन होठों को चूमा था कोई उद्यमी प्रेमी 
मुझ से प्यार करने के बाद, तुम खो दोगी वह होंठ 
और वहां उग आयेगा एक सुन्दर गुलाब।
 
मुझसे इश्क़ करने के बाद तुम्हारा कुछ भी पहले जैसा नहीं रह जायेगा 
लगेगा जैसे कोई, 
कभी न ठीक होनेवाली बीमारी है तुम्हे सदियों से, 
लेटी हो अस्पताल में। 

दूसरी ही मिनट लगेगा जैसे 
मानव इतिहास में एक तुम ही हो स्वस्थ, 
और बाकी सब बहुत बीमार है।
 
शहर और सभ्यता की गंदी नालियां पार करके चौराहे पे आके 
जब मेरा हाथ पकड़ोगी तुम,
तब तुम्हें लगेगा कि जैसे यह शहर और बीसवीं सदी के 
जीवन और सभ्यता के मैले पानी में 
आसमान छूती हुई एक मृणाल के ऊपर तुम ही हो खिली हुई 

निष्पाप विशुद्ध कमल। 
पवित्र अजर।।

 

( *Baudelaire; the French poet is referred to here)

Who is Fumbling on Forgiveness After All?

It has been a long time since I have been musing on this topic. I wanted to write on it quite a few times but I, even I, fear being misunder...