Saturday, September 21, 2019

टकराता फ़िराक़

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जहाँ तुम फिसलते हो कहीं
अचानक शुरू हो जाता है
ठीक उसी जगह फिसलना मेरा
महीनों फिसलती रहती हूँ!
यादों के फिसलन भरी गलियों से गुज़रने से भी 
ज्यादा मुश्किल हो जाता है,
अपने ही घर में चलना।

बस एक बार तुम्हारे टकराने की देर होती है
और टकराना शुरू कर देती हूँ मैं
उसी कोने से!
नीला होता रहता है जगह जगह
जिस्म मेरा।

और नीली पड़ती जाती हूँ मैं
तुम्हारे फ़िराक़ में!




Who is Fumbling on Forgiveness After All?

It has been a long time since I have been musing on this topic. I wanted to write on it quite a few times but I, even I, fear being misunder...