ज़रूरी चीज़ों का, सुना है कल एक फ़ेहरिस्त निकली है
देखो तो, मेरे काम का कुछ सामान जोड़ा के नहीं उन्होंने!
पिछली फ़ेहरिस्तों में इश्क़, ज़िन्दगी, और खुशी की बारी नहीं आई थी
मुझे बोला गया था के उनकी ज़रुरत नहीं है अभी!
बोला, दवाई ज़रूरी है।
और हाँ! शराब भी।
सही तो है! खुशी जब लापता हो तो,
अक्सर उसकी ज़रुरत पड़ जाती है।
क्या ज़रूरी है, क्या ग़ैर-ज़रूरी
सब जैसे उलट - पुलट हो गया है।
किसी ने कहा, अब के फेहरिस्त में,
ख़ुदा को शामिल किया गया है!
ठीक ही है! सुना है,
इश्क़ की गैर-मौजूदगी में ही अक्सर,
ख़ुदा, ख़ुदा बन पाता है!
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