Saturday, January 8, 2022

थोड़ा जल्दी चलो भाई

 

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- सुभाष मुखोपाध्याय

अनुवादक: नयना Nayana
"लेनिन को हमने खड़ा कर रखा है
धर्मतला में
ट्राम गुमटी के पास।
कूड़े के ढेर में से भात चुनकर खा रहे है कुछ लोग
कूड़ेदान में हाथ घुसाकर।
लेनिन देख रहें हैं।
गांव से एक आदमी शहरी डॉक्टर के हाथों कंगाल होने आया था
उसके पहले ही उसको कंगाल कर दिया एक जेब-कतरे ने।
लेनिन देख रहें हैं।
शाम ढलते ही जिस लड़की को एक टैक्सी उठाकर ले गई थी ,
शाम खत्म होते होते ,
उबासी लेते हुए
वो फिर आ कर खड़ी हो गई है उसी पेड़ के नीचे।
लेनिन देख रहें हैं।
खड़े रहते रहते लेनिन को भी उबासी आ रही थी ।
अचानक जैसे वो थोड़ा चौंक कर सपाट खड़े हो गए।
जिधर उनकी नज़र है, उधर झांक कर देखा
लाल निशान उड़ाकर मजदूरों का एक विशाल जत्था चला आ रहा है।
मुझे लगा , लेनिन जैसे चिल्लाकर बोल उठे,
सदी बीतने के कगार पर है-
थोड़ा जल्दी चल लो भाई, थोड़ा जल्दी चल लो।"

Original poem: Ektu pa chaliye bhai...

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