सोचा है ये अज़ाब ख़त्म हो तो शहर में निकलूं
और छू कर देखूं दिल्ली का हर कोना
हलके से हाथ फेरूं और धीरे से पूछूं,
"इश्क़ बाकी है अब भी?"
पूछूं, "कहाँ दुखता है, बोलो?"
"कहाँ कहाँ?"
It has been a long time since I have been musing on this topic. I wanted to write on it quite a few times but I, even I, fear being misunder...
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