साला ... आज चढ़ा ली है मैंने बहुत!!
रात के साथ याराना पुराना है मेरा।
कंदुपट्टी की किसी रंडी की आँखों
के सुरमे का इशारा है,
इस मस्तानी रात के पूरे बदन में!
पैर हलके से लगते है
इधर-उधर पड़ते हैं
गहरे काले अब्र* के -
सुनसान महल के भीतर चले जा रहे हो
जैसे!
ज़मीन ने पर बांध रखा हैं मेरे पाँव - -
अबे कौन है तू जिन्न का पूत सामने खड़ा?
हो जा किनार!
दिख नहीं रहा तुझे रास्ते में उतरा हूँ मैं?
सटक जा तू!
नहीं तो पिछवाड़े पर लात पड़ेगी!
पड़ेगा जोर का चांटा गालों पर!!
शरीर के आंगन में आज चिराग जल रहे हैं बेशुमार!
मुझे कोई कहता है "मोइफा का बेटा",
कोई "जुम्मन का बाप",
"हुस्ना बानो का शौहर"
कोई कहता है "सुबराती मिस्त्री"!
बेशरम गली की चंपा, चूमकर कहती है,
"तुम इस दिल के सौदागर हो मेरे!
मेरे जान के हक़दार!"
अपने गले में किसका गीत सुनता हूँ पर ठंडे आंसुओं से भरा?
असल में कौन हूँ मैं? कहाँ से आया हूँ इस दग़ाबाज़ दुनिया में?
और जाऊंगा भी कहाँ आख़िर में उस्ताद?
चूड़ीहट्टा, चान खां का पुल, चकबाज़ार,
आशक जमादार लेन, बोंसाल;
चाहे कोई भी जगह हो मकान,
आदमी मैं वो एक ही हूँ! गोल सा मुँह, सर पर बाबरी
ठुड्डी पर ज़रा सी दाढ़ी, गाल पर दाग,
जैसे अठन्नी हो एक पुराने ज़माने की!
अभी मेरी अपनी हथेली तक बेगानी लगती है मुझे!मेरा ख़ुद का जिगर भी लगता है
जैसे होगा किसी और ही इंसान का!
शरीर के अंदर ऐसे लोटता-पोटता, पलटी खाता है
जैसे ज़रा भी चैन नहीं है इसको!
दिल जैसे जिंजीरा" की जंगली ज़मीन, या वीरान आंगन कोई!
मेरी जान पर रेंग रहा हो जैसे कोई डरा हुआ ज़हरीला बिच्छू!
और ऐसी रातों में मुझे ख़ुद से भी डर लगता है
लगता है जैसे मैं ख़ुद भी उठ कर आया हूँ बीच रात
ज़मीन के बहुत नीचे से, बहुत ज़माने बाद!
ये किसकी मैय्यत जा रही है अंधेरी रात में?
बीवी बच्चा छोड़ कौन पड़ा है
अकेला लकड़ी की खाट पर बे- फ़िकर
कोई नवाब हो जैसे -
अबे समझे के नहीं तुम ससुर के नाती!
अभी अज़राईल** आ कर खड़ा हो जाए तो
तुम भी सीधा जा कर घुस जाएगा किसी अंधेरी क़ब्र में!
तेेेरा दिमाग़ भी न सुबराती मियां, मेरी जेब की तरह ही है!
बिलकुल सफा़-चट!!
पर अब भी ज़िंदा हूँ, अभी भी नाक में आती है
गुलाब की ख़ुशबू, मठ्ठे की तरह चांदनी खिलती है जब,
अजीब सा खिल उठता हूँ मैं।
ख़्वाबों की कोई ख़ूबसूरत लड़की,
गहरा समुंदर, सुन्दर सी नाव, और आसमानी परियों की बारात
खिड़की से आती हुई धूप, झूम क़व्वाली की तानें, चिड़ियाँ -
उदास बनाता है यादों को!
हाँ! अभी भी ज़िंदा हूँ मैं,
और मौत के पिछवाड़े में लात लगाकर
मौत तक सही सलामत ज़िंदा रहना चाहता हूँ!
ये सब बड़ी बड़ी कोठी, रास्ते का किनारा, मस्जिद की मिनार
नल का मुँह, बेगानी मैय्यत, फ़जर के वक़्त चिड़ियों की आवाज़
अंधे फ़कीर की लाठी की आवाज़, जैसे ज़िक्र^
सब कुछ, अभी सब कुछ ख़्वाब सा लगता है!
और ये बंदा?
ये बंदा भी ख़्वाब?
~ शामसुर रहमान
Translation: नयना
*अब्र = बादल
**अज़राईल= The Angel of Death, who takes the souls from bodies when people die.
"जिंजीरा: A place in Bangladesh
^ज़िक्र: भक्तिपूर्ण कृत्य हैं, मुख्य रूप से सूफ़ी इस्लाम में, जिसमें छोटे वाक्यांशों या प्रार्थनाओं को मन में या जोर से बार-बार चुपचाप सुनाया जाता है। इसे प्रार्थना माला के सेट पर या हाथ की उंगलियों के माध्यम से गिना जा सकता है।
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ReplyDeletevery nice Nayana
ReplyDeleteबहुत गहरी कविता है ।
ReplyDeleteजबरदस्त लिखी हुईं हैं जमीन से लेकर व्यक्ति के दिल दिमाग में पनपने वाला सारा सच बयां करती हैं ।
धन्यवाद इस बेहतरीन कविता को हिंदी में ट्रांसलेशन करके हम तक पहुंचाने के लिए ।
👏🏻😊
Thankyou so much Nayana ji
Thanks a ton Meena!
Deleteबहुत गहरी कविता है ।
ReplyDeleteजबरदस्त लिखी हुईं हैं जमीन से लेकर व्यक्ति के दिल दिमाग में पनपने वाला सारा सच बयां करती हैं ।
धन्यवाद इस बेहतरीन कविता को हिंदी में ट्रांसलेशन करके हम तक पहुंचाने के लिए ।
👏🏻😊
Thankyou so much Nayana ji
Hmmm... Abhi bhi soch mein hun
ReplyDeleteKi ye khwab hai ya hakikat!!
Hmm... Soch mein hun
ReplyDeleteKya ye khwab hai ya hakikat!!
Mai bhi kayi baar is udhedbun me hi rah jaati hu
Deleteबहुत गहराइयों में ले जाती है आपकी रचना
ReplyDeleteThank you so much ...
DeleteThis is perhaps the best of your writings. As stirring as the original.
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