Tuesday, October 27, 2020

আঘাত একটা প্রতিধ্বনি মাত্র~

 আমি জীবন দিয়ে দেখেছি,

কোনো দুঃখই আমার একার নয়।
প্রত্যেকবার আঘাত পাওয়া মাত্র বুঝে যাই
এই আঘাতটাও অন্য কোনো আঘাতের প্রতিধ্বনি!
আমি তাই কান পেতে অপেক্ষা করি সেই মুহূর্তটার জন্যে,
যখন আমার বিষাদ একটা জানলা হয়ে উঠবে
যে জানলা দিয়ে আমি দেখতে পাবো এমন সবকিছু,
যা আগে কখনো দেখি নি।

আমার সবথেকে বেশী হাতবদল করা স্বপ্নের আতশ-কাঁচের ভেতর দিয়ে
একবার প্রবল হাওয়ার মুখে একটা কাপাস ফুলের মাথা
খারাপ হয়ে যেতে দেখেছিলাম!
আর দেখেছিলাম ঠিক সেই ক্ষণেই সে কেমন
হাজার হাজার বীজ হয়ে চতুর্দিকে ছড়িয়ে পড়েছিলো!


The original:
What I know about living is the pain
is never just ours.
Every time I hurt I know
the wound is an echo, so I keep listening
for the moment when the grief
becomes a window,
when I can see what I couldn’t see before.
Through the glass of my most bartered dream
I watched a dandelion lose its mind
in the wind and when it did,
it scattered a thousand seeds.
-Andrea Gibson

Monday, October 19, 2020

मेरे सीने की बावन अलमारियाँ

 मेरे सीने की बावन अलमारियाँ

- पुर्णेन्दु पत्री 

~ अनुवाद: नयना 

मेरे सीने में बावन अलमारियाँ हैं  शीशम  की 

मुझे जो भी कुछ पसंद है, सब वहीं है 

वो सारी हँसी, 

जैसे खुले आसमान में  सुनहरे पंखों की उड़ान 

वो सारी आँखें, जिनके नीले पानी में बस डुबो कर मारने वाली लहरें

वो सारे स्पर्श, जैसे स्विच छूते ही रोशन कर देने वाले बत्तियां 

सब उन अलमारियों के भीतर।  


जो सारे बादल टूट कर गिर गए हैं किसी जंगल में स्याह रात की ओर जाते जाते  

उनके शोक,

वो सारे जंगल जो पंछियों की ख़ुशी लेकर उड़ने की कोशिश में कुठाराघात से  बर्बाद हो गए

उनके रुदन,

जो सारे पंछी गलती से गा उठे बसंत के गीत किसी बरसात की शाम में 

उनका सर्वनाश  

सब उन अलमारियों के अंदर।  


ख़ुद के और अनगिनत आदमी और औरतों के नीले से साये और काला सा खून

ख़ुद के और जाने पहचाने कई युवक- युवतियों के मैले रुमाल 

और रद्द किए गए पासपोर्ट 

ख़ुद के और इस समय के सारे टूटे हुए फूलदान के टुकड़े 

सब वही बावन अलमारियों के किसी अँधेरे कोने में,

किसी ताक में 

सीने में।


The original

https://banglarkobita.com/poem/famous/1310

Monday, October 5, 2020

तुम्हारे विषाद

तुम्हारे विषाद हथेली पर उठा लेने दो  मुझे 
उन्हें होंठो पर रखना चाहता हूँ मैं।  
अविरल बारिश है आज यादों में, 
दिन भर.... 
बैठी हो अकेली इस बरसात में -
किसी रेतीले तट पर 
पड़ी हो जैसे कोई दीमक लगी तस्वीर 
किसी गुज़रे ज़माने की! 

तुम्हारे  अवसाद उठा लेने दो मुझे हथेली पर  
उन्हें होंठो पर रखना चाहता हूँ मैं।

मनुष्य का भीषण विषाद 
कभी बजता था मंदिर के शंखनाद  में!
मनुष्य का महान विषाद
नक्काशी किये हुए स्तम्भों से कभी छुआ करता था आकाश!  
आज है बिलकुल चुप! 

पानी में छूरा घुस जाए - 
कोई आर्तनाद नहीं!
ख़ून में रुदन घुस आए -  
अब कोई विरोध नहीं!
हर कोई इतना शांत 
जैसे निश्चिंत बैठा हो अपने बगीचे में 
जबकि फूलों में लग चुकी है आग!
जबकि ख़ुशबू और शोक आमने सामने हैं I

तुम्हारे अवसाद होठों से उठा लेने दो मुझे 
हथेली पर सजाना चाहता हूँ मैं!

शुरुआत में रहता है सब कुछ वादों से भरा - 
जैसे शुरुआत के सारे पौधे हरे-भरे! 
शुरुआत के सारे चेहरों पर 
नरम लताओं वाली सफ़ेद अल्पना 
सारी बातें किसी चरवाहे की बांसुरी 
सारी ऑंखें, बग़ैर काजल और चश्मा,
जैसे मासूम हिरण!

फिर कुछ ज्यादा ही वास्तविक होने में 
बदल जाता है सब कुछ!
आ जाते हैं
आँखों में मोतियाबिंद, गालों में मुहांसे, 
सीने में बाल 
नाख़ूनों में ख़ून
लालसा और लोभ 
अंजीर की तरह गुच्छों में चिपक जाते हैं दांतों से!

अति लालसा में पेड़ लम्बे होते हैं - 
और ऊँचा होने से और बहुत सारा आकाश!
ऐसा सोचते हुए जिराफ़ की तरह अपनी गर्दन बढ़ाकर 
पेड़ लंबे होते हैं 
जबकि हवा में उनके पीले पत्ते, बासी फूल उड़ते, 
होश खोते, चक्कर खाते, गिरते रहते हैं
बड़ा सा ढेर लगने लगता है उनका I
पानी और ज़मीन  भर जाता है उनके शोक-ध्वनि से !

किसी और जगह और ज़्यादा प्यार मिल सकता है... 
किसी सोने के संदूक में बंध 
बस इसी लालच में बचपन के परियों वाला महल खंडहर हो जाता है!
साधारण सूती की साड़ी और नहीं पहनी जाती, 
और चोटि में अक्सर झलक जाता है किसी साँप का साया 
ईर्ष्या का काजल चढ़ आता है आँखों पर 
हँसी में झलक जाती है सफ़ेद आरी!


कोई चाहे कितना भी दूर चला जाए 

आख़िर में सब वापस आते हैं

यादों की घनघोर बरसात में
पछतावे के रेत चुनते हैं किसी रेतीली नदी के किनारे - 

उठा लेने दो 
अब हथेली पर तुम्हारे विषाद   
उन्हें होठों पर रखना चाहता हूँ मैं।  


इंसानी प्रारम्भ भरा हुआ है अस्त-व्यस्त जाने कितने  भागम-भाग से!
उस प्रारम्भ में है फूल चुनने वाली कई सारी भोर, 
फूलों की तरह कंकड़ भी! 
पॉकेट में कितने सारे फोटो, 
आईने के टूटे हुए टुकड़े, आतिशबाजी, होली के रंग, 
टेढ़े हो चुके रिकॉर्ड के गाने, 
आँचल में जाने कितना कुछ 
मनोहर मंत्र-ध्वनि,
पालकी भी जाती है पंछी जाता है जितनी दूर....

शुरुआत में रहता है ऐसे ही सब कुछ वादों से भरा 
धीरे धीरे
भीषण नीरवता में, सब से 
छुपकर 
वादे, पेड़, और इंसान 
एकसाथ पीले पड़ जाते हैं! 

धीरे, बिलकुल चुपके से 
आँखों का काजल, बालों की बेनी,
चित्र वाला आँचल 
सोने का संदूक, सारी सावधानियां,
सफलता की ऊँची गर्दन,
स्तम्भ, दम्भ, जांघ, जंघा, गर्व, अहंकार 
सभी कुछ से चूता है 
.. 
रिसते हुए पसीने जैसा अद्भुत विषाद! 

तुम्हारे विषाद होठों पर उठा लेने दो मुझे 
हथेली पर रखना चाहता हूँ उन्हें मैं।  

सभ्यता, समय, या इंसानों का महान इतिहास 
इतने शोक में भी अभी तक मरा नहीं।
क्योंकि इंसान अभी भी अपनी हथेली पर 
उठा लेता है औरों के विषाद। 
आकाश, पाताल से इतना विष, 
बारूद और कीटाणुओं के आक्रमण के बावजूद 
अभी भी इंसान किसी महान अमृत की खोज में 
दूसरों के होंठों से सारे ज़र्द विषाद चूस लेना चाहता है।   

अभी भी विषाद की खोज में 

पुरुष, नारी के पास जाता है 
नारी, नदी के पास जाती है 
नदी जाती है ज़मीन के पास
और ज़मीन देखती है आसमान की ओर।

तुम्हारे विषाद हथेली पर उठा लेने दो मुझे 
उन्हें अपने होंठों पर रखे रहना चाहता हूँ मैं!

This is a translation of Purnendu Patri's poem called Tomar Bishaadguli ... তোমার বিষাদগুলি . 
You can read the original here https://banglarkobita.com/poem/famous/334

Who is Fumbling on Forgiveness After All?

It has been a long time since I have been musing on this topic. I wanted to write on it quite a few times but I, even I, fear being misunder...