Friday, January 1, 2021

तगादे की चिट्ठी

अभी भी नहीं मिला

मेरा कुर्ता, दुपट्टा, सीने पर वो खुली क़िताब, 

और पीला दोशाला 

बिन इनके सर्दियाँ काटना बड़ा मुश्किल है

लौटते डाक से

मेरे हिस्से की गरमाहट वापस कर दो।


नरम लपटें अब नहीं उठती यहाँ स्निग्धता की 

आग सेकने का रिवाज़ भी अब रहा नहीं  

वो दोशाला भेज दो तो थोड़ा देह ताप लूँ --


हड्डियों तक धँस गई है ज़ुल्म की बर्फ़ीली हवा

मेरी आधी रात की सोंधी ख़ुशबू वाली 

अलबेली, मस्त फिरती हवा,

हो सके तो वापस कर दो !


तुम जो पश्चिमी बादल लाए थे साथ

रखा है अभी भी दराज में 

एक बार भी छुआ नहीं उसे फिर कभी मैंने

निश्चल, सौम्य, सफ़ेद बादल अब भी वहीं पड़े हैं

यक़ीन मानो, तुम्हारे कहते ही लौटते डाक में वापस कर दूंगी!

बारिश करवा लेना तुम उससे- 

मुझे बस वो मेरे पत्तों के बीच खिली हुई सुनहरी धुप ज़रूर वापस कर दो....    





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