अमीर ख़ुसरो से मुझे अक़्सर मिलने जाना पड़ता है
ख़ुसरो मेरे अनगिनत प्रेमियों में से सबसे लम्बे अरसे तक टिकने वाले इंसान हैं
यानि इस मामले में अभी तक के सबसे कामयाब आदमी भी!
वैसे तो ज़रूरी और ग़ैर-ज़रूरी काम मिलाकर मुझे मसरूफ़ियत काफ़ी है
पर ये बात अमीर जानते हुए भी अनजान बने रहना चाहते हैं!
तो फ़िर गर्मी की शुरुआत में, दिल्ली जानलेवा हो जाने के ठीक पहले
या फ़िर उसके आख़िर में,
जब गर्म हवाओं के साथ एक तरह का समझौता हो चुका हो,
या फ़िर सर्दियों के आमद की हल्की ख़ुशी बाँटने की तैयारी में
मतलब साल में कई बार किसी न किसी बहाने से
उनसे मिलने जाना पड़ता है मुझे -
वैसे पूरी बात उन पर डाल भी दूँ पर इतना बताना तो बनता है कि
अमीर के साथ गुफ़्तगू अज़ीज़ है मुझे भी।
पर हैं तो वो आदमी ही न! ये बातें गलती से भी निकल आयी तो अगले ही दिन
शुरू हो जायेगा मेरे सिर पर चढ़ कर सूफियाना रक़्स-
निजामुद्दीन का आँगन काफ़ी नहीं रह जायेगा तब!
तो ये दिलचस्पी बिल्कुल नहीं जताती मैं।
वैसे भी मेरी निजी ज़िन्दगी में दखलंदाज़ी कुछ कम नहीं है इनकी
मसलन, मेरे हर प्रेमी की ख़बर रखते हैं वो
प्रेमी नहीं, मानो मेरी ज़िन्दगी के हर आदमी की ख़बर रखते हैं
और बिन बात के अचानक, "प्रणय को उतना तूल मत दो!"
"कनिष्क बिल्कुल समझदार नहीं लगता मुझे, धक्का खाओगी तुम!" से लेकर -
"माफ़ कर रहे हो, कर दो! कोई बात नहीं।
"लेकिन बस चाचा हैं इसलिए इतिहास भूल न जाना।"
ऐसे और भी बहुत कुछ दबी आवाज़ में मेरे कानों में बोलतें जातें हैं
मैं ध्यान नहीं देती। नज़रअंदाज़ करती हूँ। सुनकर भी नहीं सुनती
लेकिन वो तो हम बसंत की हवा के साथ भी करते हैं
या फिर ऊँची चट्टानों से कूदते हुए झरने को भी क्या उतना सुनते हैं,
जितना सुनना लाज़मी है?
वैसे लाज़िम सुनते ही अमीर गुस्सा हो जाते हैं!
"क्या लाज़िम है क्या नहीं, ग़र सोचता तो तुम से इश्क़ करता जान?
वो भी सदियों के इस पार से?"
तब मैं चुप हो जाती हूँ और उनके शरीर पर बिछी चद्दर प्यार से ठीक कर देतीं हूँ
बोलती हूँ, ध्यान रखना। अब मान भी लिया करो कुछ क़ायदा।सर्दियों की सुबह इतनी जल्दी क्यों उठते हो?
सोना थोड़ी देर और!
ये सब सुनते वक़्त अमीर मेरे हाथ अपनी हाथों में पकड़ कर रखते हैं
नरम और मज़बूत उस मुठ्ठी में बिछी हुई चांदनी की तरह शांत हो जाती हैं मेरी उँगलियाँ
और उँगलियों के पोरों में बहता ख़ून भी।
दिल निस्तब्ध हो जाता है
गहरे इश्क़ के सामने जैसे घुटने टेक देता है निरंतर बहता काल -
The original by Ankita Ghosh
আমির খসরুর সাথে আমার প্রায়ই দেখা করতে যেতে হয়
আমির খসরু আমার বহু প্রেমিকের মধ্যে সবথেকে লম্বা সময় থেকে যাওয়া পুরুষ
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