Sunday, January 17, 2021

रिश्ते

 "कुछ रिश्ते टूट जाने पर लगता है

अब और जीना मुमकिन नहीं होगा
फिर धीरे धीरे वही आदत में घुल जाता है इंसान
फिर से सीधा खड़ा होता है
और बालों में उँगलियाँ फेरते हुए
फिर उतर आता है भीड़ में
कोई भी समझ नहीं पाता
इस इंसान के भीतर, है एक और इंसान
टूटा सा, सिमटा हुआ सा एक और इंसान"











Original poem by Ranjan Acharya

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