Monday, August 23, 2021

আমি চাই

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আমি চাই স্পর্শ বেঁচে থাক

সেই স্পর্শ নয় যা কাঁধ চীরে হঠাৎ

আততায়ীর মতো আমাদের পার করে যায়

বরং সেই স্পর্শ বেঁচে থাক 

যা কোনো লম্বা অজানা যাত্রার শেষে 


পৃথিবীর কোনো এক চেনা কোণায় পৌঁছনোর অনুভূতি দেয়।  


আমি চাই জীবনে আস্বাদ বেঁচে থাকুক  

মিষ্টি আর তেতো নয়

 এমন স্বাদ যা জবর-দখল করে না

বরং বাঁচিয়ে রাখে - 


আমার উদ্দেশ্য সহজ সরল বাক্য বাঁচিয়ে রাখা

যেমন - আমরা সবাই মানুষ!

আমি চাই, এই বাক্যের সততা বেঁচে থাকুক!

রাস্তায় যে স্লোগান শোনা যায়

বেঁচে থাক সে তার প্রকৃত অর্থ নিয়ে।  

আমি চাই নিরাশাও বেঁচে থাক

যা আবার কোনো নতুন আশা জাগিয়ে তোলে

নিজের জন্যে 

আর জীবিত থাক শব্দ 

পাখির মতোই যা কখনো ধরা দেয় না 


ছেলেমানুষি বেঁচে থাক প্রেমে - 

আর কবিদের মধ্যে বেঁচে থাক একটু লজ্জা।  


- মঙ্গলেশ ডবরাল

Image Courtesy: Google/Oprah.com 

https://www.oprah.com/health/health-benefits-of-touching

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मैं चाहता हूँ 

- मंगलेश डबराल

मैं चाहता हूँ कि स्पर्श बचा रहे

वह नहीं जो कंधे छीलता हुआ

आततायी की तरह गुज़रता है

बल्कि वह जो एक अनजानी यात्रा के बाद

धरती के किसी छोर पर पहुँचने जैसा होता है


मैं चाहता हूँ स्वाद बचा रहे

मिठास और कड़वाहट से दूर

जो चीज़ों को खाता नहीं है

बल्कि उन्हें बचाए रखने की कोशिश का

एक नाम है


एक सरल वाक्य बचाना मेरा उद्देश्य है

मसलन यह कि हम इंसान हैं

मैं चाहता हूँ इस वाक्य की सचाई बची रहे

सड़क पर जो नारा सुनाई दे रहा है

वह बचा रहे अपने अर्थ के साथ

मैं चाहता हूँ निराशा बची रहे

जो फिर से एक उम्मीद

पैदा करती है अपने लिए

शब्द बचे रहें

जो चिड़ियों की तरह कभी पकड़ में नहीं आते

प्रेम में बचकानापन बचा रहे

कवियों में बची रहे थोड़ी लज्जा ।


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