मेरे ज़हन में कुछ ख़याली, मनगढंत ख़ुशियां भरी पड़ी हैं
सच-नुमा! सच ही हैं जैसे।
कभी-कभी लगता है सच से भी ज़्यादा सच्ची हैं
साल दर साल लम्बाई बढ़ी है उस लिस्ट की
जुड़ती गईं नई नई ख़ुशियाँ उसमें
सिर्फ़ मेरे ज़हन में -
घर लौटने की ख़ुशी, अब्बू का साथ पाने की ख़ुशी,
अम्मा के साथ पैर पसारकर लम्बे समय तक बातें करते रहने की ख़ुशी,
तसल्ली भरे घर में सुकून वाली ख़ुशी
तुम्हारा हाथ पकड़कर रात भर तारे देखने की ख़ुशी -
ख़ामोश रातों में कहीं दूर घास पर लेट कर।
और भी बहुत सारी ख़ुशियाँ हैं मेरी -
तारों भरी रातों में रस्सी से खटिया बुनने जैसा ही बुना है उन्हें मैंने
एक लम्बे अरसे से, इतने ध्यान से-
जैसे फूलों वाला नक्शा बनाता है कोई क्रोशिया के कांटे से।
इतना दिल लगाया कि कभी-कभी ख़ुद ही बुद्धू बन जाती हूँ
किसी बेपरवाह पल में सोच लेती हूँ, ये सब सच ही हैं जैसे!
इतनी बार सुना है मैंने इन सब ख़ुशियों के बारे में इतने लोगों से
कभी-कभी लगने लगता है जैसे ये ख़ुशियाँ मेरे पास भी हैं।
एक नरम सी गोद है, कुछ मुलायम, स्निग्ध दोपहरियाँ हैं,है पेड़ों से घिरा हुआ एक शीतल सा पोखर
जिसके ठंडे पानी में कभी भी उतर जाना मुमकिन है!
एक हरसिंगार के फूलों वाला आंगन भी है उन शामों के लिए
जब दिल बिलकुल ख़ाली सा लगता है।
"तू आगे बढ़ती जा बस! हम हैं साथ में"
लगता है कुछ ऐसा जैसे मैंने भी सुना है!
लगता है ये सब सच में हुआ था
सच में देखे हैं तारे तुम्हारे साथ रात-भर,
रात की ओस और नरम हवा सच में शांत कर गए थे मुझे
जब चाहूँ लौट सकती हूँ वहाँ।
जैसे सच में एक लौट कर जाने लायक घर मेरा भी है
जहाँ सच है, शांति है -
और है बिना किसी शर्तों के ढेर सारा प्यार।
सच-नुमा ख़्वाबीदा ख़ुशियों की यही एक बुरी बात है
कभी कभी वे सच लगने लगती हैं।
N.B. It is a translation of my own poem by the same name in Bengali https://ladybugsfieldnotes.blogspot.com/2014/09/blog-post.html?fbclid=IwAR2m3HPchEeoVx3TP130VhocY-P5rulk9YatIMSXdT3NivwmVjztBN89xK4